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मदद में उठे हाथ - भूखों तक पहुंचाने रोटी और भात 

पंगु, संवेदनहीन सरकार और गैरहाजिर प्रशासन का इंतज़ार किये बिना

न ये दान है न अहसान है
इंसान द्वारा इंसान की मदद का एक अभियान है
न इसमें कोई हिंदू न मुसलमान है
हर कोई इस वक्त में
बस इंसान है इंसान है।

फोटो इसलिए लगाए जा रहे हैं ताकि कि इस अभियान से सब जुड़ें। सहयोग के लिए साधन जुटाने में योगदान देने वाला भी तसल्ली चाहता है कि उसकी दी मदद का सदुपयोग हो रहा है।  कारपोरेट और हिंदुत्व के घालमेल से बनी सरकारों के एजेण्डे पर जनता कभी नहीं रही। 

जब दुनिया कोरोना वायरस से अपनी जनता को बचाने के लिए जी तोड़ कोशिशों और इंतजामों में लगी थी, मोदी सरकार अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के भावभीने स्वागत के लिए करोड़ों रुपया फूंक रही थी। जहाज में उड़कर आई बीमारी, सबको जांच मशीन, कुछ को क्वैरेन्टाइन से गुजार कर हवाई अड्डों की गेट पर रोकी जा सकती थी। मगर दुनिया भर में हवाई अड्डों पर सख्ती के बाद भी 15 लाख यात्री आते गए और सरकार उन्हें बना जांच के  रही।  कनिका कपूर लखनऊ में वसुंधरा राजे और दुष्यंत सिंह के साथ जश्न मनाती रहीं दूसरी सांसद मैरी कॉम राष्ट्रपति भवन में फोटो खिंचाती रहीं।  

खतरा खुलकर आने के बाद भी अपने भाषण में मोदी जब मात्र 15 हजार करोड़ रूपये का पैकेज दे रहे थे ठीक उसी दिन को नई संसद बनाने और राष्ट्रपति भवन के विस्तार वाली सेंट्रल विस्टा के लिए दिए 20000 करोड़ रुपये आवंटित किये जा रहे थे - यह इतना पैसा है जिससे एम्स जैसे अति-आधुनिक 15 नए अस्पताल खड़े किये जा सकते हैं।  इसके बाद आये पैकेज के बारे में अलग से लिखा  चुका है।  बिना किसी योजना और पूर्व इंतजाम के किये गए 21 दिन के लॉक-डाउन ने देश की जनता को संकट में धकेल दिया है।  रोज कमाने खाने वाले  45 करोड़ से अधिक लोगों के सामने तो जि़ंदा रहने का वास्तविक संकट खड़ा हो गया है। 

इस असाधारण विपदा के दौर में भी 135 करोड़ आबादी का आधे से ज्यादा हिस्सा किस तरह की हालात से गुजर रहा है इसकी चिंता करने की बजाय मीडिया मानवता के असली अपराधियों को बचाने और हिन्दू-मुसलमान का जघन्य खेल खेलने में लगा हुआ है। मध्यप्रदेश में तो जैसे सरकार है ही नहीं - जितने भी टोल फ्री नंबर जारी किये गए हैं वे उठ नहीं रहे।  सीएम हेल्पलाइन में फोन करने के बाद भी राहत पहुँच नहीं रही,  इन तमाम आशंकाओं और अनिश्चितताओं की भरमार वाले शोर के बीच अच्छी खबर ये है कि जिन जिन जिलों में जहां जहां भी हैं वहां मजदूर, किसान, छात्र, युवा आंदोलन और दीगर सामाजिक संगठनो के कार्यकर्ता जुटे हुए हैं। घिरे हुए लोगों को राशन पहुंचाने, खाना भिजवाने, दूसरी बीमारियों से पीडि़त लोगों को डॉक्टर और दवाइयों को उन तक पहुंचाने की कोशिशों में लगे हैं।  

भोपाल में एनआरसी और सीएए की साझी लड़ाई के दौरान विकसित हुए आधा सैकड़ों जन संगठनो और सामाजिक आन्दोलनों के समन्वय ने जनसम्पर्क सामुदायिक किचिन के नाम से इस विपदा से जूझना शुरू कर दिया है।  तीन से 5 हजार लोगों के फ़ूड पैकेट्स से शुरू हुआ यह अभियान जनसहयोग और बीसियों युवा कार्यकर्ताओं की मेहनत के साथ तेजी से हर रोज आगे बढ़ रहा है।

भोपाल में ही एक किचिन बी टी आर भवन में जनवादी महिला समिति और एसएफआई के साझे प्रयासों से शुरू हुआ है।  जमस ने कुछ बस्तियों में अपनी कार्यकर्ताओं के घरों में राशन पहुंचाकर स्थानीय स्तर पर छोटे छोटे सामुदायिक किचन शुरू किये हैं। इनमे महिला और युवा लड़के लडकियां सारी जोखिम उठाकर पुलिस और प्रशासन के व्यवधान के बावजूद उत्साह से लगे हुए हैं।  

पहले ही दिन ग्वालियर के मोतीझील के पास बदनापूरा के पास पहाड पर पत्थर तोडऩे आये करीब 200 आदिवासी लोग लॉक डाउन के चलते खाने को मोहताज हो गए।   कलेक्टर को ट्वीट किया, दोपहर के बाद पटवारी पहुचे, प्रशासन की वोलंटियर टीम से संपर्क किया गया, सबने आश्वस्त किया लेकिन भूखे आदिवादियो तक 24 घण्टे से ज्यादा हो गए लेकिन कोई मदद नहीं गयी तो  माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं और ग्रामीण जनों ने मिलकर उनके लिए राशन की व्यवस्था की।  इसके बाद पार्टी दफ्तर में एक किचिन शुरू हो गया अब तीनो शहरों में अलग अलग रसोई शुरू  हैं।  ग्वालियर के ही गाँव बिलौआ में माकपा और जनवादी नौजवान सभा के कार्यकर्ता भूखो तक खाना पहुंचाने के काम में जुटे हैं , दतिया जिले के इंदरगढ़ में भी अनेक युवाओं ने यही सिलसिला शुरू किया। 

नीमच में सीटू के जिला दफ्तर को ही भोजन और राशन के सेंटर में बदल दिया गया।  यहां के साथियों ने जरूरत मंदों को ही राशन नहीं दिया बल्कि वहां लगे सर्कस में लॉकडाउन में घिर गए उनके आर्टिस्ट्स और कर्मचारियों को भी खाना खिलाया और आटे तथा चावल की बोरियां तथा अन्य खाद्य सामग्री भेंट की।

 नीमच की सीटू जिला इकाई ने भोपाल में चल रहे जमस/एसएफआई के लंगर के लिए भी राशि भेजी है। ऐसी अनेक खबरे हैं। ग्वालियर में डिस्टिलरी कर्मचारियों ने एक्सट्रा काम करके भारी तादाद में सैनेटाइजर बना दिए। जिन्हे रोकथाम में लगे स्वास्थ्य तथा पुलिस कर्मियों  के बीच मुफ्त में वितरित किया गया। यहां सौ फीसद श्रमिक सीटू के सदस्य हैं।   
मध्य प्रदेश भर के मोहल्लो, बस्तियों के अनेक घर, सीपीएम, ट्रेड यूनियन्स, किसान सभाओं और जनवादी महिला समिति के दफ्तर किचिन बन गए हैं। कहीं पूड़ी-सब्जी बन रही है तो कहीं पुलाव पक रहा है। कहीं कच्ची सामग्री के पैकेट्स बनाकर भेजे जा रहे हैं। जाहिर है यह सब बिना जाति या धरम देखे हो रहा है।   

इन्हें तो यह सब करना ही था। मगर सबसे सुखद बात यह है कि इस काम में स्वत:स्फूर्त तरीके से आम नागरिक आगे आरहे हैं। कोई आटा, कोई तेल, कोई सब्जी तो कोई नकद राशि पहुंचा रहा है। कोई कागज के लिफाफे खरीद कर दे गया तो भोपाल में दो ऑटो वालो ने ढाई घंटे तक खाना बंटवाने के बाद किराया लेने से इंकार कर दिया। इस तरह की मदद करने वाले कथित बड़े लोग नहीं नहीं है-खुद निम्न मध्यम या जाग्रत मध्यम वर्ग के नागरिक हैं। आफत में मिल बाँट कर खाने के मानवीय संस्कारों से लैस हैं। दर्जन भर से अधिक जगह से खबर आयी कि उनके यहां भी कहीं पार्टी दफ्तर, कही महिला समिति ऑफिस तो कहीं सीटू के ठिकानों पर खुली इस तरह की किचिन; पूड़ी, सब्जी, पुलाव बने और जरूरतमंदों के बीच बंटे। अनेक ने खुद फोन कर आर्थिक सहयोग भेजने की पेशकश की है। इस काम में लगे कार्यकर्ताओं के अनुभव एक जैसे है।  उन्होंने लोकजतन को बताया कि वे जिन भी बस्तियों में खाना लेकर जाओ वहां सरकार और प्रशासन नाम की चीज नहीं दिख रही। इन कार्यकर्ताओं से सभी मोहल्लों में पूछा गया कि आप युवा, महिलायें तो घर घर जाकर खाना बांट रहे हैं 7 नेता ,मंत्री, विधायक कहीं छुप कर बैठे हैं। जिनके पास कार्ड हैं उन्हे कुछ राशन मिल गया है पर बाकी सामान दाल, तेल, सब्जी, मसाले, शक्कर, बच्चो के लिये दूध, पकाने के लिये ईंधन की समस्या है।  फ्री नहीं तो बहुत सस्ती दर में भी सामान मिले तो थोड़ी राहत मिल सकती है।

लोकजतन परिवार इन सभी का अभिनन्दन करता है। इनकी कोशिशों में अपनी ओर से हर तरह की मदद और सहयोग का वायदा करता है। लोकजतन के वरिष्ठतम साथी और प्रबंधक सुरेंद्र जैन ने 10 हजार रूपये तथा लोकजतन पाठकों ने 10 हजार रुपये इस काम के लिए अभी तक सौंपे हैं। दिए हैं।  

इतिहास का सबक है कि; महामारियां और हादसे सबक भी होते हैं अवसर भी होते हैं। दुनिया में महामारियों के धक्को ने जनता को रईसों की ऐसी लूट का जरिया बनाया है जिससे उबरने में उन्हें दसियों साल लग गए तो कई बार वे ऐसी प्रगतिकामी जीतों को हासिल करने का माध्यम भी बनी हैं जिनके बारे में कुछ सप्ताह पहले किसी ने सोचा भी नहीं था।  इस बार इनमे से क्या होने जा आरहा है इसका निर्णय आने वाले कुछ दिन करेंगे। यह जागरूक भारतीयों पर निर्भर करेगा कि इस निर्णय का इंतज़ार करेंगे या उसे मनुष्यता के पक्ष वाला बनाने के लिए कुछ करेंगे। 
 

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