Sidebar Menu

शिवराज सरकार का जनतंत्र पर हमला - विधायकों का प्रश्र पूछना प्रतिबंधित-माकपा

राज्यपाल, मुख्यमंत्री और संवैधानिक पद पर बैठे पदाधिकारियों की सुरक्षा के संबंध में प्रश्र पूछने पर रोक भी खतरनाक है। प्रदेश का हाल का अनुभव बताता है कि व्यापमं घोटाले में मुख्यमंत्री निवास और राजभवन भी संदेह के घेरे में रहा है। मुख्यमंत्री और मंत्रियों के भ्रष्टाचार संबंधी मामलों में लोकायुक्त की कार्यपद्धति पर भी उंगलियां उठी हैं।


भोपाल। मध्यप्रदेश विधान सभा द्वारा विधायकों के प्रश्र पूछने पर लगाया गया प्रतिबंध जनतंत्र पर हमला है। यह संघ परिवार की फासीवादी और जनतंत्र विरोधी सोच को आगे बढ़ाने का एक खतरनाक कदम है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह द्धारा प्रेस को जारी एक बयान में कहा गया है कि इस प्रतिबंध के अनुसार विधायक, विधान सभा द्वारा गठित समितियों और उनकी कार्यपद्धति पर प्रश्र नहीं पृछ सकते हैं, जबकि यह समितियां विधान सभा के अधीन कार्य करती हैं और यदि इनके संबंध में कोई आशंका किसी विधायक के मन के पैदा होती है, तो इस संबंध में प्रश्र का अधिकार है। विधायकों के प्रश्र पूछने के अधिकार पर रोक लगाकर सरकार इन समितियों को अपने अनुरूप संचालित करना चाहती है। प्रदेश के कुपोषण पर श्वेतपत्र जारी करने के लिए सरकार ने दो वर्ष पूर्व कमेटी गठित की थी, आज तक इस समिति ने अपना काम ही शुरू नहीं किया है, जाहिर है कि इस तरह की समितियों के प्रश्र पर रोक भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का प्रयास है।


माकपा ने कहा है कि संघ परिवार के साम्प्रदायिक एजेंडे को सरकार जिस तरह आगे बढ़ा रही है, उसके खिलाफ विधान सभा के अंदर और बाहर प्रतिरोध की आवश्यकता है। मगर सरकार ने राष्ट्रीय एकता और गोपनीयता के आधार पर इनके और दंगों के संबंध में जानकारी मांगने पर प्रतिबंध लगा दिया है। माकपा ने कहा है कि जब पुलिस मुख्यालय से एक खास समुदाय द्धारा संचालित संस्थाओं पर निगरानी रखने के लिये सर्कुलर जारी होता है,या भोपाल की केन्द्रीय जेल के विचाराधीन कैदियों के तथाकथित एनकांउटर पर प्रश्र उठते हैं तो सरकार की ओर से इन प्रश्वों का उत्तर देने से बरी कर सरकार ने संघ परिवार को अपने साम्प्रदायिक धुर्वीकरण के एजेंडे को लागू करने के लिए आजाद कर दिया है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह के अनुसार राज्यपाल, मुख्यमंत्री और संवैधानिक पद पर बैठे पदाधिकारियों की सुरक्षा के संबंध में प्रश्र पूछने पर रोक भी खतरनाक है। प्रदेश का हाल का अनुभव बताता है कि व्यापमं घोटाले में मुख्यमंत्री निवास और राजभवन भी संदेह के घेरे में रहा है। मुख्यमंत्री और मंत्रियों के भ्रष्टाचार संबंधी मामलों में लोकायुक्त की कार्यपद्धति पर भी उंगलियां उठी हैं।

माकपा नेता के अनुसार यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्धारा इंदिरा गांधी के खिलाफ दिए गए निर्णय के बाद इंदिर गांधी द्धारा किए गए संशोधन का ही दूसरा रूप है। जिसके खतरनाक परिणाम होंगे।
माकपा ने समस्त धर्मनिरपेक्ष और जनवादी ताकतों को सरकार के इस निर्णय का विरोध करने की अपील की है।

Leave a Comment