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चना, मसूर और सरसों भावांतर योजना से बाहर, सरकार की अपराधिक अपराधिक धोखाधड़ी - माकपा

प्रदेश की रबी सीजन की तीन प्रमुख फसलों चना, मसूर और सरसों को भावांतर योजना से बाहर , मुख्यमंत्री और प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के साथ की गई अपराधिक धोखाधड़ी है

भोपाल । प्रदेश की रबी सीजन की तीन प्रमुख फसलों चना, मसूर और सरसों को भावांतर योजना से बाहर कर शिवराज सिंह चौहान सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार की जी हजूरी करने के लिए प्रदेश के हितों का समर्पण भी कर सकती है। दुर्भाग्य से इस बार कृषि संकट की मार झेल रहे किसानों को आड़तियों और बिचोलियों के सामने लुटने के लिए मजबूर कर दिया है।


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने उक्त बयान जारी करते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री और प्रदेश सरकार द्वारा किसानों के साथ की गई अपराधिक धोखाधड़ी है। मुख्यमंत्री ने ही घोषणा की थी कि किसान भावांतर योजना का लाभ लेने के लिए इन फसलों का पंजीयन करायें। अब केन्द्र सरकार के दबाव में मुख्यमंत्री ने इन फसलों को भावांतर से बाहर करने की घोषणा की है।


माकपा ने कहा है कि प्रदेश में 49.48 लाख हैक्टेयर भूमि पर इन तीनों फसलों का 71 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है। मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि किसान इनकों मंडियों में एमएसपी पर बेचें। विडंबना यह है कि जब सरकारी खरीद एजेंसियां, दलहन और तिलहन संघ सक्रिय होकर खरीदारी नहीं कर रहे हैं तो किसान आड़तियों और बिचोलियों के हाथों लुटने के लिए मजबूर हैं।


जसविंदर सिंह के अनुसार चने की न्यूनतम समर्थन मूल्य 4400 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि मंडियों में किसानों को 3200 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक का दाम नहीं मिल रहा है। इसी तरह मसूर की एमएसपी 4250 रुपए प्रति क्विंटल है और मंडियों में इसका भाव 3100 रुपए चल रहा है। सरसों भी 4200 रुपए प्रति क्विंटल की तुलना में 3500 रुपए से अधिक में नहीं बिक रही है। इन तीनों फसलों से ही किसानों की 77850 करोड़ की लूट हुई है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री ने पहले घोषणा कर किसानों को अंधेरे में रखा है और अब बिचोलिओं और दलालों की तिजोरियां भरने का रास्ता साफ कर दिया है।
माकपा ने राज्य सरकार के इस निर्णय की निंदा करते हुए इसे वापस लेने की मांग करते हुए प्रदेश भर की पार्टी इकाईयों को सरकार के किसान विरोधी निर्णय को किसानों के बीच लेजाने और किसानो को संगठित कर सरकार को किसान विरोधी निर्णय को बदलने के लिए बाध्य करने का आव्हान किया है।

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