मंडला। 12 दिसम्बर का दिन असुरक्षित, अनावश्यक चुटका परमाणु बिजली घर के विरुद्ध दो माह से अधिक की पदयात्रा के बाद संघर्ष के अगले चरण की घोषणा हेतु "मण्डला" मध्यप्रदेश में बीसियों जनसंगठनों, किसान सभा, वामपंथी दलों की चेतावनी सभा का दिन रहा। इसे सुरक्षा कारणों से खतरनाक बताते हुए वक्ताओं ने आर्थिक रूप से भी हानिकारक बताया।
1400 मेगावाट की चुटका परमाणु बिजली परियोजना की अनुमानित लागत 16 हजार 500 करोड़ निर्धारित की गयी है । इसके अनुसार एक मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत 12 करोड़ आयेगी जबकि सौर उर्जा मात्र 4 करोड़ प्रति मेगावाट में बनती है ।
नई दिल्ली की एक संस्था आबजरबर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार विदेशी परमाणु संयंत्र से वितरण कंपनियों द्वारा खरीदी जाने वाली बिजली की लागत रू 9 से 12 प्रति यूनिट तक आयेगी।
वक्ताओं के मुताबिक यदि इतनी महंगी बिजली के परिप्रेक्ष्य में अन्य विकल्प पर विचार किया जाए तो चौंकाने वाले तथ्य यह है कि मध्यप्रदेश शासन द्वारा रीवा जिले के त्योंथर तहसील में 750 मेगावाट की मेगा सोलर विद्युत प्रतिस्पर्धात्मक बोली के तहत मात्र रूपये 2.97 प्रति यूनिट पर बिजली खरीदने का अनुबंध 17 अप्रेल 2017 भोपाल में किया गया है । जो कि स्वयं महंगे परमाणु बिजली घर की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है ।
सभा में रखी जानकारी में कहा गया कि जहां सौर उर्जा संयंत्र 2 वर्ष के अंदर कार्य प्रारम्भ कर देगा,वहीं परमाणु बिजली घर बनने में कम से कम 10 वर्ष लगेंगे। जिससे परियोजना खर्च एवम ब्याज लागत के कारण बिजली की कीमत महंगी होगी ।
आंदोलनकारियों के मुताबिक यह भी सच्चाई है कि सौर उर्जा एक स्वच्छ व पर्यावरण हितैषी उर्जा स्रोत है। वहीं परमाणु उर्जा तुलनात्मक दृष्टि से पुर्णत: सुरक्षित नहीं है। जापान के फुकुसिमा में हुआ हादसा जापान के सभी परमाणु विद्युतघर बंद करने का दबाव है। इसके पुर्व थ्री माईलआइलेनड तथा चेरनोबील परमाणु हादसा सभी के जेहन में है ।
बरगी बांध से बिजली की उत्पादन लागत 11पैसे प्रति यूनिट पड़ती है से बिजली उत्पादन नहीं कर उसका पानी चुटका बिजली घर को देना प्रस्तावित है ।
मध्यप्रदेश पावर मेनेजमेन्ट द्वारा निजी विधुत कम्पनियों से महंगी बिजली खरीदी अनुबंध के कारण 2013-14 में 9288 करोड़ का घाटा हुआ है,जिसकी भरपाई बिजली दर बढाकर प्रदेश के एक करो? 35 लाख उपभोक्ताओं से वसूली की जा रही है ।
यह भी एक विचारणीय मुद्दा है कि वर्ष 1990 में बरगी बांध बनने से मंडला,सिवनी एवम जबलपुर के 162 गांव डूब मे आये। जिसमें अधिकांशत: आदिवासी गरीब किसान प्रभावित हुए हैं । बांध बनाते समय विकास के बड़े- बड़े दावे किये गये थे तय था कि आसपास के जिलों में 4.44 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी,जिससे 10 लाख टन अतिरिक्त अनाज का उत्पादन होगा किन्तु वास्तविकता यह है कि 25 वर्षो से अधिक समय बीत जाने के बावजूद मात्र 70 हजार हैक्टर यानि 15 प्रतिशत जमीन में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है ।
राज कुमार सिन्हा के संयोजकत्व, सत्यम पाण्डेय के संचालन और बरगी विस्थापित संघ तथा चुटका परमाणु संयत्र विरोधी आंदोलन के नेता दादूलाल कुड़ावे की अध्यक्षता में हुयी चेतावनी सभा के वक्ताओं में नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर, सीपीएम राज्य सचिव बादल सरोज, सीपीआई राज्य सचिव अरविन्द श्रीवास्तव, सीपीआई माले के राज्य सचिव विजय कुमार, आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सी आर बख्शी, विस्थापन विरोधी आंदोलन के पर्यावरणविद् प्रफुल्ल सामंत रे, म.प्र. किसान सभा के उपाध्यक्ष रामनारायण कुररिया, टोको रोको ठोंको क्रांतिकारी मोर्चा के उमेश तिवारी, गोंडवाना समग्र क्रान्ति आंदोलन के गुलजार सिंह मरकाम, समाजवादी जन परिषद के गोपाल राठी, न.पा. निवास के अध्यक्ष चैन सिंह बरकड़े के साथ अंशुल मरकाम, मीराबाई, जिला एवम् जनपद पंचायतो के अनेक निर्वाचित पदाधिकारी चिंतलाल सोमडिय़ा, मनमोहन, गुलाब परते, मोतीसिंह धुर्वे, पूरन धुर्वे, भारतीय गोंडवाना पार्टी के गुलाब सिंह मरकाम, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बनवारी यादव तथा मोलेसिंह गुठारिया शामिल थे ।
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