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इन्दौरः वामदलो ने 6 दिसंबर को मनाया ''सदभावना दिवस''

भारत के धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र पर लगे इस दाग को एक चौथार्इ सदी बीत चुकी है परंतु इस ध्वंसलीला के सूत्रधारों के खिलाफ आज तक कोर्इ कार्यवाही नहीं की गर्इ है। जिन लोगो ने खुलआम देश के संविधान और कानून की धज्जीया उडार्इ आज वही लोग देश की सत्ता पर काबिज है। भारत के जनतंत्र पर हो रहे हमलो और इस अन्याय को जनवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकते कभी नहीं भूलेंगे और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये लडते रहेंगे।

इन्दौर। आजाद भारत को संविधान प्रदान करने वाली प्रारूप समिति के अध्यक्ष डाॅ. बाबा साहब अम्बेडकर की पुण्यतिथि एवं बाबरी मस्जिद ढहाये जाने की 25वीं बरसी 6 दिसंबर 2017 को ''सदभावना दिवस'' के रूप में मनाया गया। इन्दौर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, एसयूसीआई(सी), भगतसिंह दिवाने ब्रिगेड एवं रूपांकन के सदस्यों ने संयुक्त रूप से स्थानिय ''गांधी प्रतिमा'' पर मानव श्रृंखला बनाकर धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र, संविधान की रक्षा और सांप्रदायिक बंटवारे को रोकन का आव्हान किया।

सभा को संबोधित करते हुवे वक्ताओं ने कहा कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का इरादतन ढहाया जाना आजाद भारत के इतिहास मे काले रविवार के तौर पर दर्ज है। यह निरंकुश कार्यवाही कांग्रेस की केन्द्र सरकार और उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकार की मिलीभगत से हुर्इ थी। उस समय भाजपा की अगुवार्इ में आर.एस.एस. समर्थित हिन्दुत्त्ववादी निजी सेनाओं ने बाबरी मस्जिद ढहाने का अपराधपूर्ण कृत्य किया था और आज सत्ताधारी भाजपा के समर्थन एवं उकसावे में इन्हीं निजी सेनाओ ने खुद ही कानून अपनी मुठ्ठी में लिया हुआ है। गौ हत्या के झूठे आरोप लगाकर कथित गौ-रक्षक बेकसूर दलितों और मुसलमानों पर हमले कर रहे है उपद्रव मचा रहे हैं।

वक्ताओं ने भारतीय संविधान को कमजाेर करने की साजिशो पर चिंता व्यक्त करते हुवे कहा कि भारत के धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र पर लगे इस दाग को एक चौथार्इ सदी बीत चुकी है परंतु इस ध्वंसलीला के सूत्रधारों के खिलाफ आज तक कोर्इ कार्यवाही नहीं की गर्इ है। जिन लोगो ने खुलआम देश के संविधान और कानून की धज्जीया उडार्इ आज वही लोग देश की सत्ता पर काबिज है। भारत के जनतंत्र पर हो रहे हमलो और इस अन्याय को जनवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकते कभी नहीं भूलेंगे और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये लडते रहेंगे।

इस अवसर पर कैलाश लिम्बोदिया, रामकृष्ण मिश्रा, अजीत केतकर, वसंत शित्रे, सोहनलाल शिंदे, चुन्नीलाल वाधवानी, श्यामसुंदर यादव, तपन भट्टाचार्य, अशोक दुबे, भवानी सिंह ठाकुर, सुभाष शर्मा, परेश टोकेकर, के.के.मारोतकर, लालेप्रसाद सुनहरे, प्रमोद नामदेव इत्यादि उपस्थित थे।

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