वे थोड़ा सा भी तुडऩे या मुडऩे की कोशिश करते तो किसी भी हाथ का कंगन या कड़े हो सकते थे। उन्हें थोड़ा सा भी व्यवहारिक ज्ञान होता तो वह किसी भी दरबार के नवरत्नों में शुमार हो सकते थे। मगर यह सब नहीं है।
Read Moreइतिहास की एक विद्रूपता यह है कि इसे हमेशा जीतने वाले लिखते और लिखवाते हैं। नतीजा यह होता है कि बिना किसी वजह अपने ही देश में अकल्पनीय निर्ममता से मार डाले गए लाखों निरपराधों का जघन्य नरसंहार बर्बरों की विजय गाथा और शौर्य के रूप में दर्ज किया जाता है।
Read Moreनवउदारवादी पूंजीवाद के तर्क और गरीबों की माली हालत में सुधार के ऐसे किसी कार्यक्रम के बीच के अंतर्विरोध से बेखबर, गरीबों की हालत में ऐसे सुधार की पैरवी करती हैं, प्रगतिशील ताकतों के लिए उतना ही अच्छा है।
Read Moreमोदी ने हर साल 2 करोड़ यानी पांच साल में 10 करोड़ नयी नौकरियों का वादा किया था। लेकिन, हुआ क्या? बेरोजगारी आज, 45 साल के अपने शीर्ष पर पहुंच गयी है।
Read Moreअमोली बहुत धनी है। उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती है। लेकिन उसकी समझ में नहीं आता कि जब वह माँ से गांव में आये आइसक्रीम वाले से कुल्फी की जिद करती है तो माँ यह क्यों कहती कि नहीं आज नहीं। बाबू को मजदूरी नहीं मिली।
Read Moreप्रज्ञा ठाकुर, 2008 के मालेगांव विस्फोट कांड की अभियुक्त है। उस पर उस गिरोह की मुखिया होने का आरोप है, जिसने मालेगांव विस्फोट में विस्फोट को अंजाम दिया था।
Read Moreवैसे तो मध्यप्रदेश का चुनावी नजारा देश के अन्य राज्यों से अलग नहीं है। भाजपा की हजाशा और गुटबाजी के नए नए नजारे देखने को मिल रहे हैं। सतना में भाजपा की महापौर जब केन्द्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने के लिए पहुंची तो वहां उनकी ही एक पार्टी की महिला नेत्री के साथ उनका विवाद हुआ। विवाद तेज हुआ। गाली गलौज तक पहुंचा और फिर हाथापाई की ऐसी नौबत आई कि महापौर के...
Read Moreऐसे देश में युद्ध के नाम पर उन्माद पैदा करके युवाओं से यह कहलाना कि स्वास्थ्य नहीं युद्ध चाहिये क्या अपराध नहीं है?
Read Moreसी पी आइ (एम) ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को इस आधार पर सही ठहराया था कि इन तबकों को सामाजिक भेेदभाव झेलना पड़ा था जो संविधान के अनुसार उन्हें 'सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़ा' बनाता है। इसलिए, अनुसूचित जाति तथा जनजाति की तरह, अन्य पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण दिए जाने की जरूरत थी।
Read Moreभाजपा सरकार के दुर्भावनापूर्ण रुख का ही नतीजा है कि पुलिस ने राजद्रोह की धारा (भारतीय दंड संहिता की दफा-124ए) का सहारा लिया है। यह वही कानून है जो ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के नेताओं के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए बनाया था।
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